How did Akbar meet Birbal?|अकबर बीरबल से कैसे मिले?

How did Akbar meet Birbal?:-एक बार बादशाह अकबर (Akbar) अपने कुछ सिपाहियों को लेकर शिकार पर निकले. शिकार करते-करते वे सभी वन में बहुत आगे निकल आये और रास्ता भटक गए. अत्यधिक प्रयासों के बाद भी उन्हें आगरा (Agra) राजमहल जाने का रास्ता नहीं मिल सका.

धीरे-धीरे शाम घिरने लगी. सबका भूख-प्यास से बुरा हाल हो गया. लेकिन वे रुके नहीं और अनुमान के आधार पर आगे बढ़ते रहे. कुछ देर में वे सब एक तिराहे पर पहुँचे. उन्हें उम्मीद थी कि वहाँ से एक रास्ता अवश्य महल को जायेगा, लेकिन कौन सा? ये पता करना आवश्यक था.

आस-पास कोई ऐसा व्यक्ति दिखाई नहीं पड़ रहा था, जिससे रास्ता पूछा जा सके. सब चिंतित होकर इधर-उधर देख रहे थे. तभी बादशाह की दृष्टि एक बालक पर पड़ी, जो उनकी ओर ही आ रहा था.
पास आने पर बादशाह अकबर ने बालक से पूछा, “बालक! ज़रा बताओ तो, आगरा के लिए कौन सी सड़क जाती है?”
बादशाह का प्रश्न सुनकर बालक हँस पड़ा और बोला, “महाशय! सड़क कहीं नहीं जाती. जाना तो आपको ही पड़ेगा.”
उसकी इस निर्भीकता और वाकपटुता से बादशाह अकबर बड़े प्रभावित हुए और प्रसन्नचित होकर उससे बोले, “बहुत वाकपटु जान पड़ते हो बालक. नाम क्या है तुम्हारा?”
“मेरा नाम महेश दास महाशय और आपका नाम?” बालक ने तपाक से उत्तर देते हुए प्रश्न भी कर दिया.

मुस्कुराते हुए अकबर ने उत्तर दिया, “तुम हिंदुस्तान के बादशाह अकबर से बात कर रहे हो.”
यह जानकर बालक ने सिर झुकाकर बादशाह अकबर का अभिवादन किया.
अकबर ने अपनी उंगली से हीरे की अंगूठी निकाल कर बालक को दी और बोले, “बालक हम तुम्हारी वाकपटुता और निडरता देखकर बहुत खुश हैं. हमारे राजमहल आना और ये अंगूठी हमें दिखाना. हम तुम्हें तुरंत पहचान जायेंगे और ईनाम देंगे. चलो, अब बता दो कि आगरा जाने का रास्ता किस ओर है?”
बालक ने अंगूठी ले ली और आगरा जाने का रास्ता उन्हें बता दिया.

समय व्यतीत हुआ और महेश दास युवा हो गया. एक दिन उसने बादशाह से मिलने उनके राजमहल जाने का विचार किया और उनकी दी हुई अंगूठी लेकर अपने घर से निकल पड़ा.
राजमहल पहुँचकर वह हैरान रह गया. कीमती पत्थरों से निर्मित और बेहतरीन नक्काशी से सज्जित आलीशान राजमहल देखकर उसकी आँखें फटी की फटी रह गई. कुछ देर राजमहल को निहारने के बाद जब वह अंदर जाने को हुआ, तो द्वार पर खड़े दरबान ने उसे रोक दिया, “रुको! ऐसे कैसे अंदर चले जा रहे हो?”
बादशाह अकबर के द्वारा दी हुई अंगूठी दिखाते हुए महेश दास दरबान से बोला, “महाशय! मुझे जहाँपनाह से मिलना है.”
दरबान उसे राजमहल में प्रवेश देने के लिए राज़ी हो गया, किंतु इस शर्त पर कि बादशाह उसे जो भी ईनाम देंगे, उसका आधा हिस्सा वो उसे देगा. बीरबल ने शर्त मान ली.
राजमहल में प्रवेश कर वह बादशाह अकबर के दरबार पहुँचा. बादशाह सलामत को सलाम करने के बाद उसने उन्हें अंगूठी दिखाई, जिसे पहचान कर बादशाह बोले, “अरे! तुम तो वही बालक हो, जिसने हमें रास्ता बताया था.”
“जी हुज़ूर”
“बोलो, ईनाम में क्या चाहते हो?”
“जहाँपनाह मैं चाहता हूँ कि आप मुझे ईनाम में १०० कोड़े लगवायें.” महेश दास ने नम्रतापूर्वक निवेदन किया.
यह निवेदन सुनकर बादशाह अकबर हक्के-बक्के रह गए, “ये तुम क्या कह रहे हो? बिना अपराध के हम तुम्हें कैसे कोड़े लगवा सकते हैं.”
“हुज़ूर, मुझे ईनाम में १०० कोड़े ही चाहिए.”
महेश दास की ज़िद के आगे अकबर को झुकना पड़ा और उन्होंने ज़ल्लाद को आदेश दिया, “महेश दास को १०० कोड़े लगायें जाये.”
ज़ल्लाद ने महेश दास को कोड़े लगा शुरू किया. जैसे ही उसने ५० कोड़े पूरे किये, महेश दास बोला, “बस हुज़ूर! ये मेरे हिस्से का ईनाम था. ईनाम का आधा हिस्सा मुझे अपने वचन अनुसार आपके दरबान को देना है. इसलिए ५० कोड़े उसे लगाये जायें.”
यह कहकर बीरबल ने राजमहल में प्रवेश के लिए दरबान से हुई बातचीत का पूरा विवरण बादशाह अकबर को दे दिया. यह बात सुननी थी कि दरबार में ठहाके लगने लगे. बादशाह अकबर ने दरबान को ५० की जगह १०० कोड़े लगवाए.
महेश दास की बुद्धिमानी को देखते हुए उन्होंने कहा, “महेश! अपनी बुद्धिमानी के कारण आज से तुम ‘बीरबल’ कहलाओगे.” और अपने नवरत्नों में सम्मिलित करते हुए उसे अपना मुख्य सलाहकार नियुक्त कर लिया.
इस तरह बीरबल अकबर (Akbar Birbal) के ख़ासम-ख़ास बन गए.

Shraddha Singh
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