Hunting and dowry

Hunting and dowry|शिकार और दहेज़

Hunting and dowry:-बादशाह अकबर को शिकार का बहुत शौक था. जब भी मन करता, वह शिकार पर निकल जाते और कई जानवरों का शिकार कर अपना शौक पूरा किया करते थे. बीरबल को अकबर द्वारा निरीह प्राणियों की इस तरह हत्या करना उचित नहीं लगता था. लेकिन सेवक होने के नाते वह सीधे-सीधे अकबर को कुछ कह नहीं पाता था.
एक दिन अकबर जब शिकार पर निकले, तो बीरबल को अपने साथ ले गए. बीरबल अवसर की तलाश में था कि किसी तरह अपनी बात बादशाह के सामने रख सके. अपने-अपने घोड़ों पर बैठे जब वे जंगल पहुँचे, तो वहाँ एक पेड़ पर उन्हें दो उल्लू दिखाई पड़े, जो जोर-जोर से चिल्लाकर आपस में लड़ रहे थे. यह देखकर अकबर को हैरानी और जिज्ञासा दोनों हुई. उन्होंने बीरबल से पूछा, “बीरबल! ये उल्लू क्या बात कर रहे हैं? क्यों ये इतनी ज़ोर-ज़ोर से लड़ रहे हैं?”

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बीरबल ने जवाब दिया, “हुज़ूर! ये दोनों दहेज़ की रक़म तय कर रहे हैं. पहला वाला दूल्हे का पिता है. वो कह रहा है कि उसे दहेज़ में ४० जंगल चाहिए, बिना किसी जानवर के. दूसरा उल्लू दुल्हन का पिता है. वो दूल्हे के पिता से कह रहा है कि अभी वो दहेज़ में केवल २० जंगल की ही व्यवस्था कर सकता है. दूल्हे का पिता मान नहीं रहा है. इसलिए दोनों झगड़ रहे हैं.”

इस बीच एक उल्लू जोर से चिल्लाया. अकबर ने बीरबल से पूछा, “अब ये क्या कह रहा है?”

बीरबल बोला, “हुज़ूर! अब ये दूल्हे के पिता से ये कह रहा है कि यदि तुम ६ माह इंतज़ार करो, तो मैं तुम्हें ४० जंगल बिना किसी जानवर के दे दूंगा.”
अकबर को समझ आ गया कि बीरबल क्या कहना चाहता है. बीरबल अकबर को समझाना चाहता था कि इस तरह जानवरों का शिकार मत करो. अगर यूं ही जानवर मारे जाते रहे, तो जंगलों में जानवर बचेंगे ही नहीं.

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