Kachua Aur Khargosh ( खरगोश और कछुए की कहानी)

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By Shraddha singh

Kachua Aur Khargosh:-एक बार एक जंगल में एक खरगोश कछुए का बहुत मज़ाक उड़ा रहा था। हा हा हा ! मेरे दोस्त कछुए ! जरा देखो तो तुम्हारे हाथ – पैर कितने अजीब हैं ! यही कारण है कि तुम इतना धीमे चलते हो।

कछुआ खरगोश का मज़ाक सुनकर बहुत गुस्सा हुआ। ये खरगोश मेरा मज़ाक उड़ाना बंद करो। मेरी रफ़्तार भले ही धीमी हो लेकिन मै अपना हर काम पूरा करके ही मानता हूँ !

कछुए की बात सुनकर खरगोश और जोर – जोर से हंसने लगा। मुझे पता है की तुम अपना काम पूरा कर लेते हो मेरे दोस्त, लेकिन इसमें तुम कितनी अधिक देर लगाते हो। एक ही काम को तुम्हे कई – कई दिन तक करते देखना वाकई बहुत मज़ेदार है।

तो खरगोश क्यों न हम आपस में दौड़ लगाएं? इससे पता लग जाएगा की हम दोनों में से कौन अधिक तेज़ है! क्रोधित कछुए ने चुनौती दी।

हा हा ! खरगोश हंसने लगा , की तुम जरूर मज़ाक कर रहे हो दोस्त कछुए ! तुम तो मुझे दौड़ में हराने के बारे में सोच भी नहीं सकते। क्या तुम्हे पता नहीं है की मुझसे तेज़ दौड़ पाना तुम्हारे लिए असंभव है?

कछुए का बहुत अधिक अपमान हो चूका था, इसलिए उसे यह साबित करके दिखाना ही था की वह धीमा नहीं है।

आपस में बहस करते दोनों दोस्त लोमड़ी के पास पहुंचे। लोमड़ी जंगल में सबसे चतुर मानी जाती है, इसलिए दोनों ने उसी से कहा कि दौड़ का रास्ता तय दे। लोमड़ी काफी सहृदय थी। उसने जल्द ही दोनों को बीच दौड़ सुरु करा दी। खरगोश और कछुआ, दोनों अब दौड़ के लिए तैयार थे।

जैसे ही लोमड़ी चिल्लाई भागो वैसे ही खरगोश पूरा दम लगाकर दौड़ने लगा। उसके दौड़ने से धूल का गुब्बारा हर तरफ छा गया। खरगोश भी दिखाना चाहता था की वह कछुए से तेज़ दौड़ सकता है। दूसरी ओर, बेचारा कछुआ दौड़ की ठीक से शुरुआत भी नहीं कर पाया। जब तक वह दौड़ शुरू करने के स्थान से थोड़ा – सा आगे बढ़ा, तब तक खरगोश उड़न – छू हो चूका था।

खरगोश दौड़े जा रहा था, दौड़े जा रहा था। जल्द ही उसने दौड़ का आधा रास्ता पूरा कर लिया। दौड़ते – दौड़ते उसने एक बार घूमकर देखा कि कछुआ कहाँ तक पहुंचा है। उसे कछुआ दूर – दूर तक दिखाई नहीं दिया। यह देखकर उसने कुछ देर के लिए अपनी रफ़्तार धीमी कर ली।

हा, उस मूर्ख कछुए को वास्तव में लगने लगा था की वह मुझसे भी अधिक तेज़ दौड़ सकता है। मैंने तो आधी दूरी अभी से तय कर ली है और वह अभी उसी जगह होगा!” खरगोश अपने मन में सोचने लगा। खरगोश को पक्का भरोसा था की कछुए को उस तक पहुँचने में अभी बहुत लम्बा समय लगेगा, इसलिए उसने कुछ देर आराम करने का फैसला किया। उसे पास में ही हरी – हरी घास दिखाई दी और वह उसे चरने चल दिया।

कुछ ही देर में उसने काफी सारी हरी – हरी घास चार डाली। अब खरगोश को नीड आने लगी। उसने सोचा की दौड़ तो हर हाल में वही जीतेगा तो कुछ देर सोने में कोई नुक्सान नहीं है। बस, खरगोश एक घने छायादार पेड़ के नीचे खुशी – खुशी सो गया।

इस बीच कछुए ने चलना जारी रखा। वह काफी ठग गया था लेकिन उसने मन में ठान लिया था की वह न तो रुकेगा और न ही आराम करेगा। वैसे भी खरगोश उससे काफी आगे निकल चूका था। इस तरह, कछुआ चलता रहा, चलता रहा और जल्द ही वंहा तक पहुँच गया, जहाँ खरगोश आराम से सो रहा था।

अपने दोस्त खरगोश को मज़े से सोता देखकर भी कछुआ नहीं रुका। वह तो बस चलता गया, चलता गया। वह एक पल भी न तो रुका न ही कोई आराम किया

जब बहुत देर हो गई तो खरगोश के नींद टूटी। उसे अब भी अपनी दौड़ ख़त्म करनी थे ! उसने आस – पास नज़र डाली।उसे कछुआ कंही दिखाई नहीं दिया। अरे वह अब भी मुझसे बहुत पीछे होगा, खरगोश ने सोचा और बची हुई दौड़ प्यूरी करने निकल पड़ा।

जैसे ही खरगोश दौड़ के आख़िरी सिरे पर पहुंचा, तो हैरान रह गया ! उसकी सोच गलत निकली थी। कछुआ वहाँ पहले से ही मौजूद था और दौड़ जीत चूका था !

इसके बाद खरगोश ने कभी कछुए की धीमी रफ़्तार का मज़ाक नहीं उड़ाया। उस दिन के बाद से वह समझ गया की धीमी गति से ही सही, निरंतर दौड़ते रहने वाले की ही जीत होती है।

कहानी से शिक्षा :- निरंतर प्रयास करने वाला हमेशा जीतता है।

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