Bull's milk

Bull’s milk|बैल का दूध

Bull’s milk:-हमेशा की तरह एक दिन मौका पाकर दरबारी बीरबल (Birbal) के खिलाफ़ बादशाह अकबर के कान भरने लगे. वे कहने लगे, “जहाँपनाह! बीरबल स्वयं को कुछ ज्यादा ही अक्लमंद समझता है. यदि वह इतना ही अक्लमंद है, तो उसे कहिये कि वह बैल का दूध लेकर आये.”


दरबारियों की बातों में आकर अकबर (Akbar) ने बीरबल की अक्लमंदी की परीक्षा लेने की सोची. बीरबल उस समय दरबार में उपस्थित नहीं था. जब वह दरबार पहुँचा, तो अकबर बोले, “बीरबल! क्या तुम मानते हो कि दुनिया में कोई कार्य असंभव नहीं?”
“जी हुज़ूर!” बीरबल में उत्तर दिया.

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“तो ठीक है. हम तुम्हें एक काम दे रहे हैं. तुम्हें उसे दो दिवस के भीतर करना होगा.”
“फ़रमाइये हुज़ूर! आपके हर हुक्म की तामीली मेरा कर्त्तव्य है.” बीरबल सिर झुककर अदब से बोला.

“जाओ जाकर बैल (Ox) का दूध लेकर आओ.” अकबर ने आदेश दिया.
आदेश सुनकर बीरबल भौंचक्का रह गया. इधर दरबारी मन ही मन बड़े प्रसन्न हुए. वे जानते थे कि यह कार्य असंभव है क्योंकि दूध गाय देती है, बैल नहीं.


“क्यों बीरबल तुमने कोई जवाब नहीं दिया?” अकबर बोले.
बीरबल क्या कहता? वह बहस करने का समय नहीं था. हामी भरकर वह घर लौट आया.
घर आकर उसने गहन सोच-विचार किया. अपनी पत्नि और पुत्री से भी चर्चा की. आखिरकार सबने मिलकर एक उपाय निकाल ही लिया.


उस रात बीरबल की पुत्री अकबर के महल के पीछे स्थित कुएं पर गई और पीट-पीटकर कपड़े धोने लगी. अकबर के महल की खिड़की उस कुएं की ओर खुलती थी. जोर-जोर से कपड़े पीटने की आवाज़ सुनकर उनकी नींद खुल गई. खिड़की से झाँकने पर उन्हें एक लड़की कुएं पर कपड़े धोती हुई दिखाई पड़ी.

अकबर ने वहीँ से चिल्लाकर उस लड़की से पूछा, “बच्ची! इतनी रात गए कपड़े क्यों धो रही हो?”
बीरबल की पुत्री बोली, “हुज़ूर! मेरी माता घर पर नहीं है. वे कुछ महीनों से अपने मायके में हैं. उनकी अनुपस्थिति में आज मेरे पिता ने एक बच्चे को जन्म दिया. दिन-भर मुझे उनकी सेवा-सुश्रुषा करनी पड़ी. कपड़े धोने का समय ही नहीं पाया. इसलिए रात में कपड़े धो रही हूँ.”

“कैसी विचित्र बात कर रही हूँ बच्ची? आदमी बच्चे पैदा करते हैं क्या?” अकबर कुछ नाराज़गी में बोले.
“करते हैं हुज़ूर! जब बैल दूध दे सकता है, तो आदमी भी बच्चे पैदा कर सकते हैं.” बीरबल की पुत्री ने उत्तर दिया.

ये सुनना था कि अकबर की नाराज़गी हवा हो गई और वे पूछ बैठे, “बच्ची, कौन हो तुम?”
“हुज़ूर, ये मेरी पुत्री है.” पेड़ के पीछे छुपे बीरबल ने अकबर के सामने आकर उत्तर दिया.
“ओह, तो ये तुम्हारा स्वांग था.” अकबर मुस्कुराते हुए बोले.


“गुस्ताख़ी माफ़ हुज़ूर और कोई रास्ता भी नहीं था अपनी बात समझाने का.” बीरबल अकबर की नींद में खलल डालने के लिए क्षमा मांगते हुए बोला.


इधर अकबर भी बीरबल की अक्लमंदी का लोहा मान गए. अगले दिन रात का पूरा वृतांत दरबारियों को सुनाते हुए उन्होंने बीरबल को उसकी अक्लमंदी के लिए सोने का हार इनाम में दिया. दरबारी हमेशा की तरह जल-भुन कर रह गए.

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