Dhruv: The Tale of Unwavering Devotion and Immortality as the Pole Star:-यह कथा राजा उत्तानपाद के पुत्र ध्रुव की है, जिन्होंने अपनी विमाता सुरुचि द्वारा अपमानित होने के बाद, भगवान विष्णु की कठोर तपस्या कर ब्रह्मांड में ‘ध्रुव तारे’ के रूप में अमर स्थान प्राप्त किया।
ध्रुव का अपमान और माता सुनीति की सीख
राजा उत्तानपाद की दो पत्नियाँ थीं- सुनीति (ध्रुव की माता) और सुरुचि (उत्तम की माता)। राजा दोनों पुत्रों से समान प्रेम करते थे, पर रानी सुरुचि ध्रुव और सुनीति से ईर्ष्या करती थीं। एक बार जब राजा उत्तानपाद उत्तम को गोद में लिए थे, तो ध्रुव भी उनकी गोद में जा बैठा। सुरुचि को यह बात पसंद नहीं आई और उसने ध्रुव को पिता की गोद से नीचे खींचकर कटु वचन सुनाए। रोते हुए ध्रुव माता सुनीति के पास गया, जिन्होंने उसे समझाया कि दूसरों के लिए कभी अमंगल न सोचे। उन्होंने ध्रुव से कहा कि यदि वह पिता की गोद में बैठना चाहता है, तो उसे भगवान विष्णु की आराधना कर उन्हें प्रसन्न करना होगा, क्योंकि वही उसके दुखों को दूर कर सकते हैं।
ध्रुव की कठोर तपस्या और विष्णु का प्रकट होना
माता सुनीति की बात सुनकर, ध्रुव के मन में श्रीविष्णु के प्रति भक्ति और श्रद्धा के भाव उत्पन्न हो गए। वह घर त्यागकर वन की ओर चल पड़ा, जहाँ उसे देवर्षि नारद मिले। नारद ने ध्रुव को श्रीविष्णु की पूजा-आराधना की विधि बताई। ध्रुव ने यमुना के जल में स्नान किया और निराहार रहकर एकाग्र मन से श्रीविष्णु की आराधना करने लगा। पाँच महीने बाद वह पैर के एक अँगूठे पर स्थिर होकर तपस्या करने लगा। उसकी कठोर तपस्या से तीनों लोक कंपायमान हो उठे, और जब पृथ्वी उसके अँगूठे के भार से दबने लगी, तब भगवान विष्णु भक्त ध्रुव के समक्ष प्रकट हुए।
ध्रुव को ध्रुव तारा बनने का वरदान
ध्रुव ने भाव-विभोर होकर भगवान विष्णु से प्रार्थना की कि उसे उनकी गोद में ऐसा स्थान प्रदान करें, जहाँ से कोई उसे उतार न सके। भगवान विष्णु उसकी निःस्वार्थ भक्ति से प्रसन्न हुए और बोले, “वत्स! मैं तुम्हें ऐसा स्थान प्रदान करूँगा, जिसे आज तक कोई प्राप्त नहीं कर सका। आज से तुम ध्रुव नामक तारे के रूप में स्थापित होकर ब्रह्मांड को प्रकाशमान करोगे।” श्रीविष्णु ने आगे कहा कि उसका पद सप्तर्षियों से भी बड़ा होगा और वे सदा उसकी परिक्रमा करेंगे, और जब तक यह ब्रह्मांड रहेगा, कोई भी उसे इस स्थान से नहीं हटा सकेगा। भगवान ने ध्रुव को घर लौटने का आदेश दिया और बताया कि वह पृथ्वी पर छत्तीस हज़ार वर्षों तक धर्मपूर्वक राज्य करेगा और अंत में उनके पास आएगा।
इतना कहकर भगवान विष्णु अंतर्धान हो गए। इस प्रकार, अपनी भक्ति से भगवान विष्णु को प्रसन्न कर बालक ध्रुव संसार में अमर हो गया।