Drop of perfume:-फ़ारस के शहंशाह और बादशाह अकबर अक्सर एक-दूसरे को उपहार भेजा करते थे. एक बार उपहार में फ़ारस के शहंशाह ने बादशाह अकबर को एक दुर्लभ किस्म का इत्र भेजा.
फ़ारस के शहंशाह और बादशाह अकबर अक्सर एक-दूसरे को उपहार भेजा करते थे. एक बार उपहार में फ़ारस के शहंशाह ने बादशाह अकबर को एक दुर्लभ किस्म का इत्र भेजा.
घुटनों के बल बैठे अकबर ने जब बीरबल (Birbal) को अपने सामने पाया, तो वे हड़बड़ा गए. उस हालत में अकबर को देखकर बीरबल मुँह से तो कुछ ना बोला, लेकिन उसकी आँखें हँस रही थी.
अकबर को बेहद शर्मिंदगी महसूस हुई. हिंदुस्तान का बादशाह इत्र की एक बूंद के लिए अपने घुटनों पर आ गया. ये शर्म वाली बात तो थी. अकबर को लगा कि बीरबल अवश्य ऐसा ही कुछ सोच रहा होगा.
उस समय तो वे कुछ न बोल सके. लेकिन उनका मन उन्हें अंदर ही अंदर कचोट रहा था. वे किसी भी तरह बीरबल की अपने प्रति धारणा बदलना चाहते थे.
उस समय तो वे कुछ न बोल सके. लेकिन उनका मन उन्हें अंदर ही अंदर कचोट रहा था. वे किसी भी तरह बीरबल की अपने प्रति धारणा बदलना चाहते थे.
अकबर ने बीरबल को बुलवा लिया और यह नज़ारा दिखाते हुए बोले, “बीरबल! देखो प्रजा कैसे ख़ुशी से बाल्टी भर-भरकर इत्र ले जा रही है. क्या सोचते हो इस बारे में?”
अकबर की मंशा बीरबल को ये दिखाने की थी कि हिंदुस्तान का बादशाह अकबर इत्र के मामले में कंजूस नहीं है. वह चाहे तो हमाम भर इत्र दान कर सकता है.
बीरबल मंद-मंद मुस्कुराते हुए बस इतना ही बोला, “बूंद से जाती, वो हौज से नहीं आती.” अर्थात् पूरा सागर भर देने के बाद भी वो कभी नहीं लौटता, जो एक बूंद से चला गया हो.
बीरबल ने इस वाक्य के सहारे कह दिया कि अकबर की इत्र का बूंद उठाने की स्वभाविक कंजूस प्रवृत्ति के कारण जो इज्ज़त चली गई है, अब वो पूरा का पूरा सागर भर देने के बाद भी वापस नहीं आ पायेगी.
सीख:
मनुष्य का चरित्र उसकी स्वाभाविक प्रवृत्ति से निर्धारित होता है, दिखावा करने से नहीं. स्वाभाविक रूप से की गई हर क्रिया-प्रतिक्रिया मनुष्य के वास्तविक स्वरुप को दर्शाती हैं. उसे दिखावे का आवरण ढक नहीं सकता. इसलिए दिखावे का भ्रम न कर अपने वास्तविक स्वरुप में ही रहना चाहिए.